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अन्नदाता कब तक रहेगा मायूस? घाटे का व्यवसाय बनकर रह गई खेती, कई सालों से नहीं पहुंचा नेवरा माइनर में पानी छुट्टा जानवर बने किसानों के लिए बड़ी मुसीबत।

अन्नदाता कब तक रहेगा मायूस?

मुदस्सिर हुसैन।। CMD NEWS

घाटे का व्यवसाय बनकर रह गई खेती।

कई सालों से नहीं पहुंचा नेवरा माइनर में पानी।

छुट्टा जानवर बने किसानों के लिए बड़ी मुसीब।

मवई अयोध्या।।  भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले किसानों की भलाई को सरकार अपनी प्राथमिकता बताकर उनके कल्याण के लिए सिंचाई बिजली व उनके उपज की वाजिब कीमत दिलाने के लिए भले ही प्रयासरत हो। लेकिन सरकार की कोशिश जमीनी हकीकत न बनकर कागजी आंकड़ों में सिमट कर रह गई है। फल स्वरूप किसानों के लिए खेती मुनाफे का सौदा न बनकर अब घाटे का सौदा बनती जा रही है,कुछ ऐसे ही हालात से जूझ रहे हैं मवई क्षेत्र के किसान।
लगभग 67 गांवो पर आधारित इस ब्लॉक के किसानों की दशा दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है,इसकी खास वजह है छुट्टा मवेशी,आज किसानों की फसलों को इन जानवरों से खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। जब कि सरकार द्वारा गांवो में गौशालाएं बनाई गई कि छुट्टा जानवरों को पनाह मिल सके,लेकिन गौशालाएं भी सो पीस बनकर रह गई, गौशालाएं होने के बाद भी इन जानवरों को सड़कों, खेतों, में घूमना पड़ रहा है,जिससे किसानों व राहगीरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आज किसानों के सामने कई मुसीबतें खड़ी है जैसे खास कर संसाधन विहीन व निर्बल वर्ग किसान जिस प्रकार खेती की सिंचाई हेतु पानी व बिजली की कटौती से परेशान हाल है। उसे देखकर यह लगता है कि छोटी जोत में पर्याप्त उत्पादन उनके लिए टेढ़ी खीर बन गया है,ऊपर से खाद व डीजल व कीट नाशक दवाओं के बढ़ते दामों ने तो उन्हें इस उधम को अलविदा कहने पर बेबस कर दिया है। करीब दो दशक पूर्व ब्लॉक मवई के अन्तर्गत ग्राम नेवरा के लिए शारदा सहायक नहर से एक छोटी माइनर निकाली गई,तो नेवरा, कोटवा,सलारपुर, रानेपुर, आदि गांवो के किसानों को यह उम्मीद जगी कि अब उनके खेतों में हरियाली दिखेगी और वे खेतो को समुचित जलापूर्ति का लाभ उठाकर संपन्न बनेंगे। लेकिन सिंचाई विभाग की अकर्मण्यता पूर्ण कार्यशैली से उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया, अतः यह नहर भी उनके लिए अभिशाप बन गई,यह रही सिंचाई सुविधा बदहाली की दास्तान। बिजली आपूर्ति की समस्या को देखे तो वह भी किसानों के लिए मुसीबत बन कर खड़ी रहती है। सरकार ने गांवो में किसानों को देखते हुए 18 घंटे बिजली उपलब्ध कराने का निर्देश जरूर दे दिया लेकिन इसे हकीकत के आइने में उतारने पर वह पूरी तरह सफल नहीं दिख रही है। इससे लघु व मध्यम वर्ग के किसानों को डीजल चालित नल कूपो से सिंचाई करना महंगा पड़ रहा है,। बाधित विद्युत आपूर्ति से विवश होकर किसानों को प्राइवेट ट्यूबवेल धारकों का सहारा लेना महंगा पड़ रहा है। फसलों में कई बार पानी की जरूरत पड़ती है,ऐसे में किसान काफी मेहनत के बाद फसल तैयार तो कर लेता है,लेकिन जब हिसाब जोड़ता है तो उसकी लागत भी नहीं निकल पाती। ऐसे में जब तक सरकार फसल तैयार करने के लिए सभी सुविधाएं नहीं प्रदान करती तब तक किसानों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरना मुश्किल होगा। अपने को किसानों का हितेषी बताने वाली सरकार किसानों की इन समस्याओं का कैसे समाधान करती है यह समय बताएगा।

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