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क्या भारत को सीख लेनी चाहिए ?

हाल ही श्री लंका में हुए एक-एक करके 8 आतंकी हमले से श्री लंका जहाँ क्षुब्ध है, वही उसमे क्रोध रूपी अग्नि प्रज्ज्वलित हो गई है। स्वाभाविक सी बात है, अगर कोई ऐसा आतंकी संगठन जो देश की अखंडता, प्रभुता और शांति को ध्वस्त करेगा और वो भी नृसंश हत्या करके, तो कोई भी देश चुप नही बैठ सकता। इस दुःख की घड़ी में पूरा विश्व श्रीलंका के साथ खड़ा है।
21 अप्रैल 2019 को ईस्टर के दिन श्री लंका में हुए आतंकी हमले से श्रीलंका और उसकी सरकार सहमी हुई है, और इसी को लेकर वह एक से एक नए कदम उठा रही है।
शनिवार 5 मई को उसने देश में रह रहे अवैध रूप से सैकड़ो पाकिस्तानी मौलानाओं को और उसके साथ ही 600 से अधिक पाकिस्तानी व्यक्ति जो वीजा समाप्त हो जाने के बाद भी पाकिस्तान में रह रहे थे, उसे अब अपने देश से निष्कासित कर रही है। यूँ कह सकते है कि उन्हें भगा रही है। 
हलांकि श्रीलंका सरकार “ज्योपोलिटिकल” परिस्थतियो के चलते वह पाकिस्तान को और उनके नागरिको को सीधे तौर पर आतंकी नही ठहरा सकती, लेकिन उसके ये कदम सीधे बता रहे है, की अब श्रीलंका में पाकिस्तान के नागरिकों की उलटी गिनती शुरू हो गयी है। और बाकी देशो के नागरिकों को छोड़कर पाकिस्तानी नागरिको पर सीधी नजर रखी जा रही है। श्री लंका सरकार ने यह कदम उठाकर आतंकियों और कट्टरपंथियों को सीधे चेतावनी दे दी है।
श्रीलंका के विदेश मंत्री वजीरा अभय वर्द्धन ने कहा, ”हमने वीजा प्रणाली की समीक्षा की और एक धार्मिक संप्रदाय के शिक्षकों के लिए वीजा प्रतिबन्ध को अत्यन्त कड़ा करने का निर्णय लिया है”
वहाँ की सरकार ने सीधे आम लोगो को निर्देश दिए है, कि वह अपने घरों से नोकदार हथियार जिसमे घरेलु रसोईया के बर्तन भी आते है, पुलिस स्टेशन में जमा करा दे, अन्यथा की स्तिथि में अगर पुलिस ने छापा मारा और अगर हथियार मिल गए तो उन्हें कड़ा दंड मिल सकता है।
अतः कुल मिलाकर हम यह कह सकते है, की श्रीलंका सरकार अब अपने यहाँ आतंकियों को बर्दाश्त नही करेगी और उन्हें हटाने के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार है।
अब बात करते है, भारत की, क्या भारत को श्रीलंका से कुछ सीख लेनी की जरूरत है? क्योंकि श्रीलंका के इतिहास में यह पहला वाक्या है, और अब यह न होने को पाये इसके लिए वह कोई भी उचित- अनुचित कार्य कर सकता है। 
लेकिन भारत में तो यह आये दिन हो रहा है, चाहे वह मुम्मई ताज होटल पर हमला हो, चाहे वह उरी, पुलवामा, जैसे असंख्य हमले हो। भारत यह दशको से झेलता आ रहा है।
हालही में मौजूदा सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक करके यह दिखा दिया है, की अब यह भारत पहले वाला भारत नही है, जिसमे भारत के सैनिकों का सर कलम करके आतंकी बच जाते थे।
भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है, दूसरे देश से आये घुसपैठिये। चाहे वह बांग्ला देश से आये हो, चाहे वह म्यामार, पाकिस्तान इत्यादि देशो से आये करोड़ो की संख्या में घुसपैठिये हो। सब भारत के लिए खतरे के रूप में हो सकते है। 
क्या भारत सरकार उन्हें यहाँ से बाहर निष्कासित करने का कोई कदम उठा रही है। हाल ही में हुए सर्वे के अनुसार भारत के असम, बंगाल, झारखण्ड और केरल जैसे कई राज्यो में बहुत सारे घुसपैठिये अवैध रूप से रह रहे है। क्या इन्हें भारत के भविष्य का खतरा मानना चाहिए? क्या जब तक कोई घटना न हो तब तक हम शांत बैठे रहे, और जो हो रहा है उसे हम शांतिपूर्वक देखते रहे? क्या हमें श्रीलंका से सीख नही लेनी चाहिए? इत्यादि बहुत सारे प्रश्न है, जो हमे दर्शाते है, की हमे समय रहते कुछ न कुछ निर्णय लेना ही होगा। वरना जो आज श्रीलंका में हुआ है, कह नही सकते की कल भारत में भी हो सकता है, और होता ही रहा है। 
दुर्भाग्य की बात तो यह है, की भारत के कुछ तथाकथित नेता जो वोटबैंक की राजनीती करते है, इन घुसपैठियों का सहयोग करते है। और जब भी केंद्र सरकार इन घुसपैठियों पर कड़ा रुख अपनाती है, ये ढाल के रूप में आ जाते है।
कुछ भी हो, समय रहते हुए कोई न कोई कदम उठाना ही होगा, वरना भविष्य के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते है।
लेखक
मुकेश श्रीवास्तव
लेखक
देश के जिम्मेदार नागरिक और संविधान के जानकार है

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