मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हे हम बापू, महात्मा, राष्ट्रपिता, गाँधी आदि कहते हैं
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01/10/2019
प्रमुख खबरें, संपादकीय
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मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हे हम बापू, महात्मा, राष्ट्रपिता आदि नामों से संम्बोधित करते है।
2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर तब के (महाराष्ट्र प्रान्त) आज के गुजरात मे जन्मे इस महान व्यक्ति को भारत ही क्या पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त है।
इस अहिंसा के पुजारी जिन्होंने अंग्रेजो के सैकड़ो जुल्म सहते हुए भी अहिंसा को न त्यागा और लोगो को अहिंसा के राह पर ही सदैव चलने के लिए मार्गप्रशस्त किया, इनके जन्मदिवस पर पूरे विश्व मे अंतरास्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है।
1869 में जन्मे 19वीं-20वीं शदी के महानायक बापू को भारतवर्ष और पूरे विश्व मे बड़े सम्मान के साथ और धूमधाम के साथ जन्मदिवस मनाया जाता है।
इन्होंने अपनी पढ़ाई लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज से पूरी की, दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी के रूप में वकालत करने वहाँ गये।
कहते है कि जब ये तत्कालीन ब्रिटिश शासन के रेलवे में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में सफर कर रहे थे, तब इनको यह कह कर रेलवे स्टेशन पर उतार दिया गया था, की काले लोगो के लिये प्रथम श्रेणी नही बनी है।
तब इन्होंने शपथ ली कि अंग्रेजो को मैं अपने देश से बाहर निकाल कर और लोगो को उनका अधिकार दिला कर रहूंगा।
दक्षिण अफ्रीका में इन्होंने मील मजदूरों पर हो रहे अंग्रेजो के अत्याचारों से उन्हें मुक्त कराया और अपने देश 1915 को वापस लौटे।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सम्मानीय और मंझे हुए राजनेता श्री गोपालकृष्ण गोखले के कहने पर ये भारत को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने के लिए स्वतन्त्रा संग्राम में कूद पड़े, गोपालकृष्ण गोखले को महात्मा गांधी का राजनीतिक गुरु भी कहा जाता है।
इन्होंने सर्वप्रथम पूरे भारतवर्ष के सामान्य श्रेणी के रेलवे डिब्बे से भ्रमण किया और 1917 में बिहार के चंपारण में हो रहे किसानों पर अत्याचारों के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया और अंग्रेजो को विवश होकर उनका अधिकार देना पड़ा।
भारत को स्वतंत्र कराने में महात्मा गांधी का अमूल्य योगदान है।
1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला और स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम अधिक प्रमुख था। फिर चाहे वह राजस्थान का खेड़ा आंदोलन से लेकर 1942 तक भारत छोड़ो आंदोलन और कई ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन से ये अंग्रेजों के पांव भारत से उखाड़ने में लगे रहे, फिर इन्होंने स्वदेशी पर जोर दिया, विदेशी वस्त्रो को त्यागने को कहा, इससे लोग चौराहों, गलियों औऱ अनेक स्थानों पर विदेशी कपड़ो की होली जलाई।
इन्होंने साबरमती नामक आश्रम बनवाया जहाँ पर ये स्वयं अपने लिए सूत से कपड़े बनाते थे।
इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ने और इसे प्रेरित करने के लिए अनेको नारे दिए इनका आखिरी नारा था जिसे एक अहिंसा के पुजारी ने परेशान होकर लोगो को दिया वह था ” करो या मरो” इनके इस नारे से लोगो के ह्रदय में अंग्रेजो के प्रति विद्रोह की अग्नि और ज्वलन्त हो उठी।
सुभाष चन्द्र बोस ने रंगून से रेडियो में इनको राष्ट्रपिता कहकर इनके नाम से एक संदेश भेजा था, तब से लोग इन्हें राष्ट्रपिता कहने लगे।
लोग कहते है कि बापू राष्ट्रपिता तो बन गए लेकिन एक पिता नही बन पाए।
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय नागरिकों पर लगाए गए नमक कर के विरोध में इन्होंने 12 मार्च 1930 को दाण्डी मार्च निकाला और 6 अप्रैल 1930 को दाण्डी पहुँच कर अपने हाथों से नमक बना कर नमक कानून को तोड़ दिया, इनके इस प्रयास से लोगो ने कई जगह नमक बनाये इससे विवश होकर अंग्रेजो ने नमक कर को वापस ले लिया।
इस अहिंसा के पुजारी ने सदैव शाकाहारी भोजन का उपयोग किया और आत्मशुद्धि के लिए कई दिनों तक उपवास भी रखा।
इन्होंने कई कुप्रथाओं और कई गलत कानूनों को तोड़ने के लिए आमरण अनशन किया।
गांधी जी कोई काम पहले अपने ऊपर कर लेते थे अगर वह सही होता था तभी दूसरो को करने को कहते थे।
एक बार कस्तूरबा गांधी बीमार पड़ गयी, गांधी जी ने उनको भोजन में नमक न लेने की सलाह दी, कस्तूरबा गांधी ने कहा भला नमक के बिना भोजन कैसे अच्छा लगेगा स्वयं छोड़ो नमक तब पता चले, इस पर गांधी जी ने नमक का त्याग कर दिया था, इसके बाद कस्तूरबा गांधी ने भी नमक त्याग दिया और अतिशीघ्र स्वस्थ्य हो गयी।
गाँधी जी का सदैव नारा था “अहिंसा परमो धरामः”
इनका प्रिय गीत था “रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सम्मति दे भगवान”
इनके प्रभाव से शीघ्र ही अंग्रेजो के पैर भारत से उखड़ने लगे और उन्होंने भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा कर दी।
अधिनियम 1947 के अनुसार अंग्रेजो द्वारा भारत को स्वतंत्र करने का प्रस्ताव लाया गया। इसी अधिनियम के तहत एक नियम आया जिसने अखण्ड भारत को खण्ड-खण्ड करने का नियम कहा गया, इस नियम के अनुसार भारत और पाकिस्तान दो अलग राष्ट्र बनने थे और जो प्रान्त चाहते इन दोनों राष्ट्र में मिल सकते थे औऱ अगर न चाहते तो स्वयं को एक अलग राष्ट्र बना सकते थे। इस पर महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत के टुकड़े मेरे लाश पर होकर गुजरेंगे लेकिन समयानुसार उनको यह वचन तोड़ना पड़ा और बहुत चाहते हुए भी भारत को बांटने से नही रोक पाए।
इससे पूरे भारत के साथ-साथ यह व्यक्ति भी टूट गया, इन्होंने अपना सर्वस्व देश पर न्यौछावर कर दिया।
इनका अतुलनीय और अमूल्य योगदान इतना है कि हम इनके कर्ज से कभी उबर नही पाएंगे।
गांधी जी को स्वच्छता से बहुत लगाव था, इस वर्ष गांधी जी के जन्मदिवस को पूरे 150 वर्ष हो गए इस उपलक्ष्य में भारत सरकार ने भारत से गंदगी का नामोनिशान मिटाने के लिए एक मुहिम छेड़ा था जो लगभग पूरा हो चुका है। शायद उस गांधी को हम लोगो की तरफ से यह छोटा सा लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक भेंट हो।
हमे भारत से गंदगी को मिटाने में अपना योगदान देना चाहिए चाहे वह बाहर की गंदगी हो या फिर हमारे ह्र्दय की गंदगी।
जय हिंद-जय भारत
~मुकेश कुमार श्रीवास्तव