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ARTICLE 15 फिल्म :- संपादकीय~ WRITER- मुकेश श्रीवास्तव

आज भारत विश्व शांति की तरफ अग्रसर है, यूँ कहे तो खुद भारत विश्व शांति के लिए अथक प्रयास कर रहा है। भारत अपना चरण 21वीं शदी में रख दिया है, आज का युवा देश की तरक्की की बात सोचता है। वह जाति, धर्म, लिंग की सोच से ऊपर उठ चुका है, और इसका जीता जागता सबूत हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव है, जिसमे लोगो ने सभी भेद भावो से ऊपर उठ कर चुनाव किया।
आज का भारत अपने भविष्य की ओर अग्रसर है, जहाँ चंद्रयान-2, अग्नि मिसाइल, रीसेट-2 जैसे उपकरण लांच किए जा रहे है, वही अपने सहयोगी देशो के साथ मिलकर और स्वयं नये-नये उपग्रह लांच करने की तैयारी में है।
आज का भारत, ये बताने की जरूरत नही की अब यह पुराना वाला भारत नही है। जहाँ पहले धर्म, जाति, लिंग आदि को लेकर भेदभाव हो रहा था। आज भारत अपनी 75वीं स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, देश बदल गया, लोगो की सोच बदल गयी।
फिर ऐसे समय में आर्टिकल 15 जैसी फिल्में बना कर लोगो को पुरानी बातों से कि कैसे उनके पूर्वजों को आहत किया जा रहा था उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था, ये सब जैसी सीन दिखाकर लोगो के ह्रदय में एक जाति विशेष के लिए आक्रोश की भावना पैदा करना, क्या सही है?
हम मानते है कि, लोगो को अपने इतिहास के बारे में जानने की पूर्ण स्वतंत्रता है, लेकिन उसके लिए किताबे है, कुछ पुरानी फिल्मे भी है, जिसे लोग देख चुके है। फिर इस 21 वीं शदी में ऐसे फिल्म बनाना क्या यह सही कदम है?
क्या ऐसे फिल्म की कहानी को पढ़कर ” केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड” को फिल्म बनाने की अनुमति देनी चाहिए? जबकि यह जानते हुए की इस फिल्म को देख कर, सत्य है कि एक जाति विशेष की भावनाएं आहत होंगी। और शायद यह दूसरे जाति विशेष पर भारी भी पड़ सकता है।
आर्टिकल 15 में कहा गया है, की “राज्य सभी नागरिकों को उसके धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नही करेगा”
इससे क्या जो भारत के संविधान में बंधुत्व की भावना की बात कही गयी है, बन पाएगा।
क्या ऐसे फिल्म को बनाने में अंकुश नही लगाना चाहिये? आप यह क्यू भूल रहे है, आप 21वीं शदी में है, जहाँ सुदूर देश और आपका देश एक गांव की तरह हो गए है, जहा जब भी कोई चाहे कहीं भी आ जा सकता है।
आज पूरा विश्व वशुधैवकुटम्बकम की राह पर चल रहा है। जहाँ हॉलीवुड जैसी फिल्मों में दूसरे ग्रह पर जाने की बात होती है, वही अभी भी भारतीय फिल्म अपनी पुरानी सोच लेकर बैठा है।
वह भूल जाता है, की उसका एक कदम करोड़ो लोगो की भावनाएं जगा सकती है।
इन सब बातों को संज्ञान में लेते हुए, फिल्म प्रमाणन बोर्ड को जागृत रहना चाहिए और ये सब फिल्म जिससे लोगो की भावनाएं आहत हो, फिल्म पर पहले ही प्रतिबंध लगा देना चाहिए।

लेखक- मुकेश श्रीवास्तव

विवेक कुमार श्रीवास्तव संपादक

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