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नानपारा बहराइच- रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो रही- डॉ शशिकांत बरगाह

रिपोर्ट- विवेक श्रीवास्तव कार्यालय

किसान पिछले कई वर्षों से रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग फसलों पर करते आ रहे है। जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो चुकी है एवं भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बदलाव हो रहे है जो किसानो के लिए काफी नुकसानदायक है। रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण प्रतिदिन बढ़ रहा है। किसानों की फसल पैदावार कमाई का आधा हिस्सा रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक खरीदने में चला जाता है। क्योकि रासायनिक कीटनाशन काफी महंगे होते है। इसी कड़ी में आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं औद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र नानपारा बहराइच प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन ग्राम परवानी गौढी नानपारा बहराइच में श्री शिव शंकर सिंह जी जो की प्राकृतिक खेती के लिए एक प्रगतिशील कृषक के प्रक्षेत्र पर आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ शशिकांत बरगाह ने एवं कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर पीके सिंह के द्वारा किया गया । प्रगतिशील कृषक शिव शंकर सिंह द्वारा बताया कि प्राकृतिक खेती, कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता है, बल्कि प्रकृति में आसानी से उपलब्ध होने वाले प्राकृतिक तत्वों, तथा जीवाणुओं के उपयोग से खेती की जाती है | यह पद्धति पर्यावरण के अनुकूल है तथा फसलों की लागत कम करने में कारगर है | प्राकृतिक खेती में जीवामृत (जीव अमृत), घन जीवामृत एवं बीजामृत का उपयोग पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने के लिए किया जाता है | इनका उपयोग फसलों पर घोल के छिड़काव अथवा सिंचाई के पानी के साथ में किया जाता है प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र, अग्निअस्त्र, सोठास्त्र, दसपड़नी, नीमास्त्र , गोमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है। केंद्र के वैज्ञानिक सुनील कुमार जी ने कीh जुताई रहित कृषि या बिना जुताई के खेती (No-till farming) खेती करने का वह तरीका है जिसमें भूमि को बिना जोते ही बार-बार कई वर्षों तक फसलें उगायी जातीं हैं। यह कृषि की नयी विधि है जिसके कई लाभ हैं। उन्होंने बताया कि इस प्रकार विधि में कई लाभ है| जैसे जुताई न करने से समय और धन की बचत होती है। जुताई न करने के कारण भूमि का अपरदन बहुत कम होता है।
इससे भूमि में नमी बनी रहती है|भूमि के अन्दर और बाहर जैव-विविधता को क्षति नहीं होती है। केंद्र की वैज्ञानिक रेनू आर्या ने बताया कि जैविक विधि द्वारा फसल तैयार करने का मतलब बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना: चूँकि प्राकृतिक खेती में किसी भी सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं होता है जिसकी वजह से यह स्वास्थ्य के लिये कम जोखिमपूर्ण है। इन खाद्यान्नों में उच्च पोषण तत्त्व होता है और बेहतर लाभ प्रदान करते हैं। तथा शरीर रोग मुक्त एवं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में लाभकारी सिद्ध है| उन्होंने बताया कि आज कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारी इन कीटनाशकों और रासायनिक खेती की वजह से ही पैदा हो रही है। इसलिए समय की मांग है कि किसान प्राकृतिक खेती की और आगे आए और इसे अपनाएं किसान अपनी जमीन के कुछ हिस्से से प्राकृतिक खेती की शुरुआत कर सकते हैं। इसके बाद आने वाले सीजन से प्राकृतिक खेती से प्राप्त परिणामों को देखकर आगे इसे और बड़े पैमाने पर बढ़ा सकते हैं।प्रगतिशील कृषक श्री शिव शंकर जी ने बताया कि जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है।जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है।

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