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संपादकीय :~ हमार सोनार बंगला

 यह शब्द उस महान कवि के है, जिन्होंने 19वीं 20वीं में कई रचनाये लिखी। इन्होंने ही हमारे राष्ट्रगान की रचना की। इनके रचनाओं से प्रसन्न होकर ब्रिटिश शासकों ने “सर” की उपाधि दी थी।
हालांकि इन्होंने 1919 में हुए जलियावाला बाग कांड के विरोध में अपनी उपाधि लौटा दी थी।
इनके जैसे कई महान क्रन्तिकारी नेता बंगाल में हुए, जिन्होंने राष्ट्र को स्वतंत्र करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसे कई महान पुरुष हुए जिन्होंने भारत में सदियों से चली आ रही कुप्रथाओ को समाप्त करने में अग्रिम कदम उठाये। इनमे से राजा राम मोहन राय, ईस्वर चंद विद्यासागर, दयानन्द सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस और उनके प्रिय शिष्य स्वामी विवेकानंद जैसे कई विभूतियां थी।


आप सभी जानते है, की सर्वप्रथम अंग्रेजो ने बंगाल को ही अपना उपनिवेश बनाया फिर धीरे धीरे पूरे देश में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिए। फिर इनको यहाँ से भगाने और और अपने राष्ट्र को स्वाधीन बनाने के लिए पूरे देश के साथ बंगाल के कई क्रान्तिकारियो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इनमे से एक महान विभूति थे, ईश्वरचंद विद्यासागर ये उस महान शख्स का नाम है, जिन्होंने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया और स्वयं के बेटे का विवाह एक विधवा से कराया। इनके इस संघर्ष का परिणाम यह हुआ की, ब्रिटिश भारत सरकार ने 1856 का अधिनियम लाकर विधवा पुनर्विवाह को वैध ठहरा कर एक कानून बना दिया। इन्होंने भारत में हो रहे बहुत से कुप्रथाओ को तोड़ा। ये एक महान शिक्षाविद भी थे। 1859 ईस्वी में इन्होंने सोमप्रकाश पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया, यह बंगला भाषा में साप्ताहिक पत्र था। सोमप्रकाश का चरित्र राष्ट्रवादी था। बंगाल में जब नील पैदा करने वाले किसानो में अशांति बढ़ी तो सोमप्रकाश ने किसानों का जोरदार समर्थन किया।
अब बात करते है आज की। देश में चुनाव चल रहे है।
पक्ष विपक्ष के तमाम नेतागण अपनी अपनी बातें जनता के सामने रख रहे है। वे एक दूसरे पर प्रत्यारोप भी लगा रहे है। यह तो चुनाव के समय आम बात है।
लेकिन अभी हाल ही में हुए बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान एक हिंसा ने देश को हिला कर रख दिया है।
जिसमे किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति को खंडित कर दिया है। अब एक पक्ष कह रहा है, की दूसरे पक्ष के लोगो ने यह कुकर्म किया है तो वही दूसरा पक्ष पहले पर आरोप लगा रहा है।
अब बात यह उठती है कि मूर्ति किसी ने भी खंडित किया हो, थे तो वे भारत के नागरिक ही।
क्या उनको ऐसे महान व्यक्ति, जिन्होंने देश से गंदगी हटाने में अपना सर्वस न्योछावार कर दिया, की पवित्र मूर्ति को तोड़ने में जरा भी लज्जा नही आई। क्या यही रविंद्र नाथ टैगोर का स्वप्न था ,”हमार सोनार बंगला”
क्या इस देश में उन महान और पूजनीय पुरुषो का थोड़ा भी इज्जत नही बचा है।
कभी बाबा आंबेडकर की मूर्ति तोड़ दी जाती है, तो कभी किसी स्वतंत्रता प्रेमी की।
क्या उन्होने इसी दिन के लिए भारत को स्वतंत्रता दिलाई थी।
एक पक्ष कह रहा है कि, हम ईश्वरचंद जी की पंचधातु की मूर्ति बनवाएंगे, तो वही दूसरे पक्ष कह रहे है कि हमे उनकी भीख नही चाहिए, हम खुद बनवा लेंगे।
अब बात यह उठती है, की आप करोड़ो की मूर्ति बनवा दो लेकिन जो अपमान उनका हो गया वो तो हो गया। ये तो वही बात हुई की, पहले किसी व्यकि को खूब पिट दो फिर उसपर मरहम लगाओ।
क्या जिन्होंने ऐसा कुकर्म किया है, उनको सजा नही मिलनी चाहिये।
हालांकि चुनाव आयोग ने ऐसा हिंसा को देखते हुए और अपना अधिकार का प्रयोग करते हुए संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत एक दिन पहले ही चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी।
भविष्य को देखते हुए, चुनाव आयोग को अपने अधिकार का पालन करते हुए, एक ऐसा नियम बनाना चाहिए । जिसमें किसी भी नेता को धर्म, संप्रदाय पर वोट मांगने पर उनपर तुरंत कार्यवाही करते हुए उनका नामांकन रद्द कर दे।
जिससे की गलत राजनीति न होने को पाये।
सहज पूछिये तो राजनीति सदैव विकास को लेकर होनी चाहिए, जिससे कोई भी जीते फायदा जनता को हो।
लेखक
मुकेश श्रीवास्तव
भारतीय इतिहास के जानकार

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