CMD NEWS ।। विवेक श्रीवास्तव
तनहा तनहा रहते हूँ
फिर भी कुछ न कहती हूँ
जाने क्या गम है मुझको
किसी से कुछ न कहती हूँ
कभी सोचने लगती हूं
मैं ऐसी हूं मैं वैसी हूं
मैं ऐसी क्यों हूं
फिर खुद पर चिल्लाती हूं
खुद ही रोती हूं
“क्यों रोती हो पगली” कहकर
खुद को ही समझाती हूं
इन भीगी भीगी पलकों में
सागर समेट कर बैठी हूं
दो बोल प्यार के जो बोले
फिर इन्हें ना रोक पाती हूँ
सारे रिश्ते नाते ने है
दिल को छलनी कर डाला
किसी ने दिल को तोड़ दिया
तो किसी ने मुझको तोड़ दिया
नफरत सी होती है मुझको
इस इंसानी दुनिया से
इंसानों से तो बेहतर है
इन प्यारे से पशुओं की दुनिया में
केवल दो रोटी पर ही ये
लुटा देते हैं अपनी दुनिया
इस खुदगर्जी दुनिया में
बस मैंने इतना है समझा
कोई ना होता है अपना
प्यार स्नेह है आज की
दुनिया में बस एक सपना-2
कोई ना होता है अपना
“खुद ही होना है तुझको चुप” कहकर खुद ही चुप हो जाते हैं।
लेखक- अनुप्रिया भारतीया