सामाजिक कार्यकर्ता और सिविल सोसाइटी के लोग आवाज उठाते हैं कि यह कानून उपनिवेशिक सत्ता के लिए सही कहा जा सकता था, लेकिन भारत जैसे आधुनिक लोकतंत्र में इसके लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
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