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मानव जीवन का सुगम पथ प्रदर्शित करते हैं उक्त रत्न की गाथाएं – आचार्य शांतनु

रिपोर्ट मुदस्सिर हुसैन CMD NEWS 

मवई अयोध्या – श्रीमद् भागवत महापुराण कथा में चौथे दिन कल दिनांक 4 अप्रैल 2025 दिन शनिवार को अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक आचार्य शांतनु जी महाराज ने समुद्र मंथन कथा के प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महराज परीक्षित के मन मे ये भाव जागृति हुआ की चौदह रत्न अनमोल धरोहर कैसे कैसे निकले और उनका क्या क्या महत्व है,जिज्ञासा प्रकट किया, तब सुखदेव जी महाराज द्वारा महाराज परीक्षित को विस्तार से बताते हुए कहा मंद्राचल पर्वत को मथानी बनाया गया और बासुकी नाग को रस्सी के रूप में समाहित किया गया,जिसके मुंह की तरफ राक्षस और पूछ की और देवताओं द्वारा खींचना छोड़ना प्रारंभ किया गया। परंतु जब मन्द्राचल पर्वत समुद्र के तल में धंसने लगा तो श्री हरि द्वारा कच्क्षपि अवतार लेकर अपनी पीठ पर पर्वत को धारण कर किया तदोपरांत मंथन प्रारंभ हुआ मंथन प्रारंभ होते थे,

 

*सर्वप्रथम हलाहल विष (जहर)* निकला जिसके ताप खलबली मच गयी, तत्त्पश्चात देवताओं एवं आदि शक्ति मां की प्रेरणा से भगवान भोलेनाथ द्वारा विषपान किया गया, जिससे उनका गला नीला हो गया,तभी से उन्हें नीलकंठ का नाम प्राप्त हुआ, बोलो नीलकंठ भगवान भोलेनाथ की जय,। कथावाचक श्री महाराज जी ने आगे बताया कि मंथन के

 

*दूसरे स्थान पर दिव्य सुरभि कामधेनु गाय*, जिसे ऋषियों को प्रदान किया गया,

 

*तीसरे स्थान पर उच्चस्श्रवा घोड़ा* जो राक्षसों के राजा बलि को प्राप्त हुआ,

*चौथे स्थान पर ऐरावत हाथी* निकला जिसे इंद्र भगवान को प्राप्त हुआ,

*पांचवें स्थान पर कौस्तुभमणि* का पदुर्भाव हुआ जिसे श्री हरि ने अपने कंठ में धारण किया,

*छठे स्थान पर कल्पवृक्ष, सातवें स्थान पर अप्सरा रंभा* आदि जो इंद्रलोक की शोभा बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रही, हैं।

*आठवीं रत्न में महालक्ष्मी मैया जगत जननी* प्रकट हुई जिसे निरंकारी अलंकारी भगवान विष्णु ने वरण किया ,

*नवे स्थान पर बारूणी* मदिरा से परिपूर्ण प्रकट हुई जिसे राक्षसों ने अपनाया,

 

*दसवीं स्थान पर चंद्रमा और 11वीं स्थान पर पारिजात वृक्ष* जो अपने-अपने स्थान पर समाहित हो गए,

*12वें स्थान पर पंचजन्य शंख* का पदुर्भाव हुआ भगवान विष्णु के कर में विराजमान है,

मथते – मथते अंत मे *तेरहवे स्थान पर धनवंती भगवान चौदहवा रत्न अमृत* का कलश लिए प्रगट हुए,बोलों धनवंतरि भगवान की जय। कथा के अगले अंक में कथा वाचक आचार्य शांतनु जी महाराज ने कहा अमृत कलश के साथ भगवान धनवंतरि के निकलते ही देवताओं और राक्षसो में अमृत पान का विवाद उत्पन्न हो जाता है तब श्रीहरि द्वारा मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत बड़ी चतुरता से दिया जाता है,वहीं राक्षसों में चतुर चालाक एक निशाचर स्वारभानु जो देवताओं की पंक्ति में सूर्य चंद्रमा के बीच बैठकर अमृत पान कर जाता है जिसका सर चक्र सुदर्शन से भगवान विष्णु द्वारा काट दिया जाता है जो 2 रुपो मे विभक्त होकर राहु /केतू के नाम से विख्यात हुए, समय-समय पर सूर्य चंद्र को यही राहु- केतु गृसते हैं,पौराणिक मान्यता के आधार पर सुर्यगृहण,चंद्रगृहण, सर्ब विदित है। श्रीकृष्ण मुरारी,गोवर्धन धारी, के अलावा कई कथाओ का बड़े-बड़े मनमोहन ढंग से कथावाचक श्री महाराज द्वारा व्याख्यान किया गया, जिसे सुनकर श्रोतागण मनमुग्ध हो गए,आज के दिन श्रीकृष्ण कथा प्रेमियों की भारी भी देखी गई।

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