रिपोर्ट राज कुमार पांडेय
अमरेश पांडे अमृत के भजनों पर खूब झूमे श्रोता
भानपुर, बस्ती। तहसील क्षेत्र के द्वारिका चक चक्कर चौराहा में चल रहे सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चौथे दिन कथाव्यास पं राज कुमार पांडेय ने वामन अवतार का प्रसंग सुनाया।
कथा वाचक पंडित राज कुमार पांडेय ने राजा अम्बरीष और दानवीर राक्षसराज बलि की भी कथा सुनाई। भगवान के वामन अवतार का प्रत्यक्ष दर्शन उपस्थित लोगों को हुआ। भगवान के वामन अवतार के रूप में बाल स्वरूप में मनमोहक छवि वाले बालक को देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो गए। श्रीमद् भागवत कथा में चौथे दिन कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े आनंद और हर्षोल्लास के साथ धूम-धाम से मनाया गया। कथा वाचक पंडित राज कुमार पांडेय जी ने श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से लोगों में भगवान के प्रति भक्ति का संचार करने का प्रयास किया। उन्होंने राजा अम्बरीष के विषय में बताया कि उनका मन सदा के लिए कृष्ण के श्री चरणकमलों में लगा हुआ था, वाणी उन्हीं के गुणानुवाद (गुणों के वर्णन) में लगी रहती थी। जिनके हाथ जब भी उठते श्रीभगवान के मंदिर की सफाई के लिए ही उठते और कान सिर्फ भगवान की कथा सुनने को आतुर रहते थे। उनकी आंखें सदैव हरि मूर्ति दर्शन को प्यासी रहती थीं और अपने शरीर से भक्तों की सेवा में ही लगे रहना चाहते थे। उनकी नासिका भगवान के श्रीचरणों में चढ़ी हुई श्रीमती तुलसी देवी के सुगन्ध लेने में तथ् अपनी जिह्वा के स्वाद के लिए भगवान को अर्पित नैवेद्य के स्वाद में लगा दिया। अपने पैरों को उन्होंने तीर्थ दर्शन हेतु पैदल चलने में लगा दिया और सिर तो सदैव भगवान के श्रीचरणों में झुके ही रहते थे। माला, चन्दनादि जो भी दिखावे अथवा भोग सामग्रियां थीं, वे सब उन्होंने भगवान के श्रीचरणों में अथवा अलंकार हेतु समर्पित कर दिया और भोग भोगने अथवा भोगों की प्राप्ति हेतु नहीं, अपितु भगवत्वरणों में निर्मल भक्ति की प्राप्ति हेतु अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। ये होती है निर्मल भक्ति का स्वरूप जो शास्त्रानुसार है।
व्यासपीठ से पंडित राज कुमार पांडेय जी ने कहा कि उनका यही स्वभाव दुर्वासा जैसे ऋषि के ऊपर भी एक बार भारी पड़ गया। वो हुआ यूं कि एक दिन दुर्वासा जी भोजनार्थ अपने सहस्रों शिष्यों के साथ राजा अम्बरीष जी के यहां पहुंचे। उस दिन द्वादशी थी, अर्थात एकादशी का पारण और समस्या ऐसी थी कि थोड़ी ही देर में अर्थात जल्द ही त्रयोदशी लगने वाली थी और पारण द्वादशी में ही करना होता है। प्रदोष लगने से पहले। अब दुर्वासा ऋषि को ये बात ज्ञात थी, फिर भी वो लेट हो रहे थे। अब अम्बरीष जी ने अपने पुरोहित से पूछा कि प्रभु ये बताएं कि दरवाजे पर कोई अतिथि आया हो, तो हम बिना उन्हें भोजन करवाए स्वयं पारण कैसे कर सकते और न करें, तो मुहूर्त निकला जा रहा है, ऐसे में हम करें तो क्या करें।
इस मौके नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की.. जैसे बधाई गीतों पर पूरा पंडाल पीला वस्त्र में भक्त जन नाचते गाते नजर आए। कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। सभी ने कृष्ण जन्म का आनंद लिया। कथा वाचक पंडित राज कुमार पांडेय जी के भजन पर नृत्य करते हुए पुष्प वर्षा कर मिठाईयां बांटी गई। उन्होंने बताया कि जब-जब पृथ्वी पर कोई संकंट आता है, दुष्टों का अत्याचार बढ़ा है तो भगवान अवतरित होकर उस संकट को दूर करते हैं। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। भक्तों की पुकार पर दैत्य दानवों के संहार के लिए भगवान स्वयं धरती पर प्रकट हुए और दुष्टों का हर युग में संहार किया।
भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के समय भोजपुरी गायक अमरेश पांडे अमृत ने बधाइयां भजनों की प्रस्तुति की जिसे सुन श्रोता झूमने को मजबूर हुए।
श्रोताओं में मुख्य यजमान सूर्यप्रकाश त्रिपाठी, डा. विष्णु प्रकाश त्रिपाठी, रूद्र प्रकाश त्रिपाठी, हनुमंत तिवारी,भोजपुरी गायक अमरेश पांडेय अमृत, राजपत मिश्रा,प्रवीण शुक्ला, अश्वनी पांडेय, राममणी शास्त्री,रामनयन पांडेय,बृजेश पांडेय,गुरु प्रसाद पांडेय,प्रभूनाथ,अर्पित,अभिषेक,नितिन दुबे,अतुल, श्लोक आदि लोग मौजूद रहे।