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संपादकीय:- नागरिकता संसोधन विधेयक-2019 जिसे समान्यतः लोग CAB या CAA के नाम से जानते है

नागरिकता संसोधन विधेयक-2019
जिसे समान्यतः लोग CAB या CAA के नाम से जानते ह। इसका पूरा नाम citizen amendment bill या Act है। इसको लोकसभा में 311 पक्ष तथा विपक्ष में 80 मत प्राप्त हुए, वही राज्यसभा में 125 पक्ष में तथा विपक्ष में 105 मत पड़े, तदनुसार राष्ट्रपति ने इसे हस्ताक्षर करके संवैधानिक रूप दे दिया।
पहले मैं इस मुद्दे पर लिखना नही चाहता था, क्योकि मुझे लग रहा था, की भारत के नागरिक, खासकर मुस्लिम समुदाय के नागरिक इसको धर्म समुदाय से आगे बढ़कर स्वीकार करेंगे जैसे अयोध्या मामले में भाई-चारे के साथ स्वीकार किया था।
लेकिन विगत कुछ दिन में भारत मे चल रहे इसके विरोध में हिंसा चरम पर आ गया और दिल्ली, उत्तर प्रदेश, चेन्नई, पश्चिम बंगाल, इत्यादि राज्यों में कहीं हिंसा तो कहीं उग्र आंदोलन देखने को मिला। जगह-जगह सार्वजनिक वस्तुओं को जलाया गया, बसों को तोड़ा, और फिर जला दिया गया, ट्रेन को अवरोधित कर उस पर पत्थर बरसाए गए और ट्रेन के पटरी पर टायर जला कर ट्रेन के संचालन में बाधा उत्पन्न किये गए। यहाँ पर यह निंदनीय और सोचनीय है कि ऐसा उन छात्रों ने किया उन विद्यार्थियों ने किया जो देश के भविष्य माने जाते है। उन्हें इस विधेयक के बारें में थोड़ा भी ज्ञान नही है, उन्हें लगता है, की यह विधेयक भारत में मुस्लिमों की नागरिकता छिनने के लिए है
और ऐसा देखने को भी मिला जब आंदोलन में आये कुछ व्यक्तियों से मीडिया ने इसके बारे में पूछा तो वो स्तब्ध रह गए और कोई उत्तर नही दे पाए, की वो क्यो इस आंदोलन में आये है। उनमें से कईयों ने कहा कि यह हम मुसलमानों को देश से निकालने के लिए है। यहाँ पर यह स्पष्ट पता चल रहा है, की भारत मे अफवाह किस चरम पर फैलाया गया है।
इसको देखते हुए एक राजयलेखक के हैसियत से मेरा यह धर्म है, की मैं लोगो को इसके बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करवा दूँ। जिससे लोग अफवाहों पर ध्यान न दे औऱ हिंसक न बने, औऱ न ही हिंसक आंदोलनों में शामिल हों।
अब बात करते हैं, इस विधेयक के बारें में,
यह बात भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की है। देश को दो भागों में बांटने की तैयारी हो रही थी। एक था पाकिस्तान तो दूसरा था हिंदुस्तान। ये बताने की आवश्यकता नही की पाकिस्तान का उदय एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में हो रहा था, और हिंदुस्तान स्वयं को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने का निर्णय ले चुका था।
ब्रिटिश सरकार ने प्रान्तों को पूरी स्वतंत्रता दी थी, की वो जिस राष्ट्र में मिलना चाहे मिल सकते है, या खुद को स्वतंत्र कर सकते है।
लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अगुवाई में एक प्रान्तीय समिति बनाई गईं, और उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए 565 प्रान्तों का भारत मे विलय कराया।
अब बात करे पाकिस्तान की तो जब पाकिस्तान अपने को स्वतंत्र किया तो उसने यह कहा कि गैर-मुस्लिम यहाँ से चले जाएं, और हिंदुस्तान ने कहा कि जो व्यक्ति यहाँ रहना चाहते है, ससम्मान यहाँ रह सकते है, उन्हें यहाँ पूरी स्वत्रंता मिलेगी। औऱ जो व्यक्ति यहाँ से पाकिस्तान जाना चाहते है वो ससम्मान जा सकते है, नेहरू-लियाकत समझौता भी इसी आधार पर हुआ था।
लेकिन मानव तो मानव पशुओं में भी भावना कूट-कूट कर भरी होती है, वो अपना जन्मस्थान छोड़ कर कहीं नही जाना चाहते। लेकिन फिर भी स्वतंत्रता के समय बहुत से लोग पाकिस्तान गए और बहुत से हिंदुस्तान आये, और बहुत से जहाँ थे वही रह गए, की उन्हें वहां पर पूरा अधिकार मिलेगा और वो वहां पर ससम्मान निवास कर सकते है । इन दिनों बहुत से हिंसाएं हुई बहुत लोग शरणार्थी बनकर रह गए।
देश आगे बढ़ चला, सब कुछ भूल कर हिंदुस्तान अपने भविष्य की ओर अग्रसर था। लेकिन उसे कुछ ही वर्ष बाद चीन से युद्ध करना पड़ा और फिर पाकिस्तान से, जिससे हिंदुस्तान की प्रगति में कुछ बाधाएं भी आई। फिर 1971 में बांग्लादेश में गृह युद्ध चला, और लाखों शरणार्थियों ने भारत मे शरण ली। जब शरणार्थियों का आना भारत मे चरम से ऊपर हो गया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हस्तक्षेप किया और फलस्वरूप पश्चिम पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान अलग हो गया, जो आज बांग्लादेश है।
बांग्लादेश से आये शरणार्थी में से कुछ ही बांग्लादेश लौटे, बाकी भारत में ही रह गए। शुरुआत में तो पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक देश के रूप में उभरा लेकिन फिर वहां पर गैर-मुस्लिम का उत्पीड़न होने लगा, वहाँ की गैर-मुस्लिम लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन होने लगा, उन पर खूब अत्याचार हुआ, और ऐसा आये दिन होता रहा। वहाँ के ग़ैर-मुस्लिम व्यक्तियो ने भारत मे शरण ली। यही हाल अफगानिस्तान, बांग्लादेश के गैर-मुस्लिमों के साथ हुआ और उन्होंने भी भारत मे शरण लिया।
इसके साथ-साथ कुछ मुस्लिम भी भारत में एक अच्छे भविष्य के लिए भारत में शरणार्थी बनकर आये।
पूर्वोत्तर राज्य विशेषकर असम में तो ये भारी मात्रा में प्रवास कर चुके है, जिससे वहां की संस्कृति और परम्परावों पर प्रतिकूल असर पड़ा है, जिसका वहां के निवासी आये दिन विरोध करते रहे है।
हाल ही में असम में हुए NRC गणना में 19 लाख व्यक्ति घुसपैठिये नामित हुए।
अब बात करें कैब (CAB) की तो इसमे उल्लिखित है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और बांग्लादेश से आये उन छः गैर-मुस्लिम धर्म के लोग जिसमे, हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई, और पारसी शामिल है, को भारत की नागरिकता दी जाएगी, और बात रही मुस्लिम समुदाय की तो वो जिस देश से आये है, वे मुस्लिम देश है और वहाँ पर उनका उत्पीड़न नही हुआ है, वे केवल भारत मे उज्ज्वल भविष्य के लिए आये है, इसलिए उन्हें यहां की नागरिकता नही दी जा सकती।
अब भारत के मुस्लिम और विपक्ष के नेताओं ने उसे संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन माना है, इस अनुच्छेद में यह उल्लेखित है, की सरकार किसी “व्यक्ति” को यहाँ ध्यान दीजिए “व्यक्ति”, को उसके धर्म, जाति, मूल, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर विभेद नही कर सकती, इसीलिए यह नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 तर्कसंगत नही है, और यह संविधान का उल्लंघन है। हालांकि इसमें “व्यक्ति” की बात कही गयी है, जिसमे भारत के नागरिक के साथ-साथ सभी व्यक्ति आ जाते है, जो भारत के नागरिक नही भी है।
लेकिन यहाँ पर सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है, की सरकार अगर कोई ऐसा कोई विधेयक लाती है, तो उसे यह साबित करना होगा कि, विधेयक तर्कपूर्ण हो और विधयेक लाने का उद्देश्य स्पष्ट हो। यहाँ पर भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है, की नागरिकता संशोधन विधेयक तर्कपूर्ण है और स्पष्ट भी, इसलिए यहाँ पर संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन नही होता है।
यहाँ पर स्पष्ट है कि यह विधेयक केवल उन्हीं छः ग़ैर-मुस्लिम समुदाय के लोगो के लिए लाया गया है, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर भारत में शरण लिए है। और यह मानवीय आधार पर सही भी है।
यहाँ पर मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ, की इस विधेयक से भारत के नागरिकों के साथ कोई हस्तक्षेप नही होगा औऱ न, ही उनकी नागरिकता रद्द होगी। और कोई भी सरकार ऐसा नही कर सकती, क्योंकी संविधान के भाग 2 के अनुच्छेद 5 से 11 में इसका प्रावधान किया गया है।
इसलिए अफवाहों पर ध्यान न दें, और देश के प्रगति में कदम से कदम मिलाकर साथ दें।
धन्यवाद


लेखक~

मुकेश श्रीवास्तव

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