संपादकीय: घिनौनी मानसिकता
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02/12/2019
प्रमुख खबरें, संपादकीय
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यंत्र नारी पूज्यंते तत्र रमन्ते देवत
यह बात हमारे वेदों और पुराणों में कही गयी है। कि जहां नारी की पूजा होती है वही देवताओ का वास होता है। लेकिन यह बात आज केवल नाम मात्र का रह गयी है। रोज होते महिलाओं के साथ दुष्कर्म यह साबित करते है कि जिस देश मे महिलाओं को देवी का स्थान प्राप्त है वहीं पर अब महिलाओं को बस भोग विलास की वस्तु समझा जाना लगा है।
महिलाएं तो महिलाएं यहाँ तक कि 1 वर्ष 2 वर्ष के बच्चों पर भी बहसी दरिंदे अपना नजर गड़ाएं रहते है।
हाल ही में हुई डॉक्टर प्रियंका रेड्डी के साथ सामूहिक दुष्कर्म फिर कपड़े में लपेट कर जिंदा जला दिया जाना ऐसा घिनौना अपराध है कि ऐसे व्यक्ति को फांसी से बड़ा सजा दिया जाना चाहिए। जिसे सबक लेकर कोई और ऐसा कुकर्म न कर सके। अब समय आ गया है कि हमारी न्यायपालिका को सख्त से सख्त कदम उठाने में जरा भी नही हिचकना चाहिए।
भारत ही में जहाँ महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया जा रहा है वही पर महिलाओं के साथ आये दिन होते दुराचार भारत के लचीले और सख्त कानून की पोल खोल रहे है।
आये दिन हो रहे दुष्कर्म चाहे वह निर्भया कांड हो चाहये कठुवा कांड या फिर डॉक्टर प्रियंका रेड्डी का यह सब व्यक्ति की गिरी हुई मानसिकता को दर्शाते हैं।
अगर देश का यही माहौल रहेगा तो महिलाएं, बच्चे घर से बाहर निकले में भी डरेंगे, वो हमेशा डरी सहमी रहेंगी, हर किसी सख्स पर उनकी शक की निगाहें रहेंगी और वे एक सम्मान पूर्ण, स्वतंत्रत औऱ गौरवपूर्ण जीवन जीने से वंचित रह जाएंगी। और यह हमारे संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
जिस देश मे एक स्त्री के सम्मान में रामायण और महाभारत करने का प्रचलन हो वही आज हम अपने उसी देश मे अपने महिलाओं की रक्षा नही कर पा रहे है।
आज जहाँ महिलाएं, पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर काम करने में प्रगतिशील है वही उनके साथ ऐसा कुकर्म अशोभनीय है।
आज बेटियां जहाँ सेनाओं में भर्ती होकर दुश्मनों के छक्के छुड़ा रही है वही अंतरिक्ष तक को अपने पैर के नीचे रौंद डाली है, रसोईघर से लेकर संसद तक और मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति के पद तक वो शुशोभित कर चुकी है। वही आज उनके लिए व्यक्तियों की ऐसी सोच चिंतनीय है। उनको सिर्फ सम्भोग की वस्तु समझना हमारे कितनी गिरी हुईं मानसिकता को दर्शाता है।
आज हम 21 वी सदी में जी रहे है, खुद को आधुनिक कहते है, क्या यही हमारी आधुनिकता है कि हम एक स्त्री को उसक सम्मान नही दे सकते, अगर उसका आदर नही कर सकते तो हम उसका अनादर करने का अधिकार हमे किसने दे दिया। ऐसी आधुनिकता का क्या फायदा जो हमारी सोच को न बदल सके।
एक महान पुरूष ने कहा था कि, सृस्टि का निर्माण और प्रलय एक स्त्री के हाथ मे रहता है।
फिर हम उसी के साथ ऐसा दुराचार कैसे कर सकते है। क्या हमें किसी स्त्री को देखकर हमे खुद की माँ, बहन की सुधि नही आनी चाहिए, क्या उसे हम अपने माँ,बहन जैसा सम्मान नही दे सकते।
क्या हम वही गांधी जी के ही देश मे रह रहे है? क्या हम गांधी जी के सपने को साकार कर पा रहे है? जिनकी यह सोच थी, की महिलाओं को उनका उचित सम्मान मिलना चाहिए।
कितने घिनौनी बात है कि जिस मां ने हमे 9 महीने कोख में रखा उसकी ममता को हम चूर-चूर कर रहे है। अगर ऐसा ही माहौल रहा तो मां अपने कोख से बच्चे को जन्मते हुए हजार बार सोचेंगी।
हमे अपनी सोच बदलनी होगी हमे अपने आने वाली पीढ़ी को संस्कार देने होंगे, उनको सभी स्त्रियों का सम्मान करना सिखाना होगा, उन्हें हमारे अतीत के महापुरुषो की कहानियां सुनानी होंगी जिन्होंने एक नारी के सम्मान में अपनी जान देने में भी जरा सा संकोच नही किया। ऐसे राम की कहानी सुनानी होगी जिन्होंने सीता के सम्मान में पूरी लंका को तहस नहस कर दिया, ऐसी कृष्ण की कहानी सुनानी होगी जिन्होंने द्रोपदी के सम्मान में भागते आये और चीर हरण में उनका सम्मान बचाया, और महाभारत करके सारे कौरवों को दण्ड दिलवाया।
हमे खुद को बदलना है, क्योकि हम बदलेंगे तब युग बदलेगा। आओ हम शपथ लेते है कि जहाँ भी होंगे अपने आस-पास सारी स्त्रियों को अपनी बहन मानेंगे और उनके सम्मान के लिए अपनी जान देने तक नही संकोच करेंगे एवं कैसे भी करके उनकी रक्षा करेंगे।
अगर यह सोच सारे व्यक्तियों में आ जायेगी उसी दिन हमे यह कहने का अधिकार होगा कि हम महान भारत के निवासी है, हम मां भारती के सपूत है, हम भारत माता के लाल है।
लेखक~ मुकेश श्रीवास्तव राज्य लेखक उत्तर प्रदेश CMD NEWS