हिंदी राष्ट्रभाषा या राजभाषा
cmdnews
28/09/2019
प्रमुख खबरें, संपादकीय
427 Views
हिंदी एक ऐसा शब्द है जिसका नाम लेते ही ह्रदय में भारत का चित्र एकाएक झलक उठता है। भारत की सादगी भरा जीवन, तीज-त्यौहार, मेलें, मठ-मन्दिर, अनेको तीर्थस्थल, इत्यादि सब ह्रदय के अंदर अवतरित हो जाता है। भारत मे उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक सबको एक सूत्र में बांधने वाली भाषा हिंदी भाषा है।
हिंदी स्वयं में एक संस्कार है, यह आर्थिक, राजनीतिक,सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक सब में देखने को मिलती है। हिंदी से ही मातृभक्ति है, हिंदी से ही, भारत की हर संस्कृति है। हिंदी, संस्कृत से निकली हुई वह अमृत धारा है, जो देवों की भाषा हुआ करती है। यूँ तो हिंदी अपने आप मे बनने से पहले कई पथ से होकर गुजरी है जैसे- संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश, अवहट्ट, प्राचीन हिंदी ।
हिंदी एक ऐसी भाषा है जो सभी भाषाओं को अपने मे मिलाते चली आ रही है। इसमें पता नही कितने भाषा मिलकर इसी के हो गए, और हिंदी बढ़ती गयी बढ़ती गयी और एक विशाल रूप ले लिया।
हिंदी अपने स्तर पर आने में कई चरणों से गुजरी है, लेकिन इनमें से जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है, तीन चरण- पहला 1100 ईसवी से 1350 ईसवी, दूसरा 1350 ईसवी से 1850 ईसवी फिर 1850 ईसवी से आजतक हिंदी अपने को बढ़ाती ही चली जा रही है।
महात्मा गांधी ने कहा था, की हिंदी सबसे सरल और बहुत ही आसानी से सीखी और बोली जाने वाली भाषा है, जो इसको समझ लेता है इसी का हो जाता है। स्वतंत्रता आंदोलन के समय हिंदी ने ही लोगो को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया था।
स्वतंत्रता के बाद 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को संवैधानिक भाषा का दर्जा दे दिया गया, और तब से प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व मे हिंदी के प्रचार प्रसार के लिये 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यद्यपि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए इसके पक्ष और विपक्ष के लोग आये दिन आंदोलन होते रहते है। इसको राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कई अधिनियम लाये गए चाहे वह 1965 का अधिनियम हो चाहे 2019 का।
2019 के राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रि-भाषा का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार
1. छात्रों को अपनी मातृभाषा,
2. भारतीय संविधान की 8 वीं अनुसूची में वर्णित 22 भाषाओं में से किसी एक भाषा को, तथा
3. अंतराष्ट्रीय भाषा को सीखने पर जोर दिया गया।
लेकिन कुछ तथाकथित दक्षिण पंथियों ने इस त्रि-भाषा का यह कहकर विरोध किया कि, हिंदी हमारे पर जबरन थोपी जा रही है।
एक विद्वान के अनुसार जो व्यक्ति अपनी निज भाषा, मातृभाषा नही जानता वह विश्व की कोई भी भाषा जान ले उससे बड़ा अज्ञानी और मूर्ख कोई नही हो सकता।
जब भारत का संविधान तैयार हो रहा था तो अंग्रेजी की वर्तमान स्थिति को देखते हुए अंग्रेजी को 15 साल के लिए संवैधानिक दर्जा दिया गया था और कहा गया था कि 15 साल बाद इसे संविधान से हटा दिया जाएगा, 1965 में जब इसको हटाने का समय आया और हिंदी को ही राष्ट्रभाषा बनाने का समय आया तो दक्षिण भारत ने इसका विरोध किया। मौजूदा स्थिति को देखते हुए पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने इसे न हटाने का आश्वासन दिया था। फिर 2019 में लागू नई शिक्षा नीति में भी इसका विरोध हुआ। खैर आगे देखते है क्या होता है?
भारतीय संविधान में भाग 5 भाग 6 तथा भाग 17 एवं भाग 22 में भाषाओं का उल्लेख है। भाग 5 में संघ की तथा 6 में राज्य की भाषा का उल्लेख हुआ है, जिसके अनुसार संसद के सदस्य हिंदी या अंग्रेजी भाषा में या सभापति/अध्यक्ष के अनुमति लेकर भारतीय संविधान के 8वें अनुसूची में वर्णित किसी भी भाषा में संसद में अपना मत रख सकते है। भाग 17 तो राजभाषा को लेकर ही बनाया गया है जो अनुच्छेद 343-351 तक भारत के सरकारी कामकाजों में कौन सा भाषा प्रयोग किया जाएगा उल्लिखित है।
हिंदी भाषाओं की जननी है, और जननी कोई भी हो उसका सम्मान बनाये रखना अतिआवश्यक है और यह भारतीय संस्कृति की ही एक अनोखी झलक है। जब पूरा विश्व निरक्षर था तब भारत में वेदों के ऋचाओं की रचना हो रही थी। भारत के ऋषियों नें विश्व को वेदों का ज्ञान कराया, विभिन्न देशों के छात्र भारत मे शिक्षा ग्रहण करने आते थे, वेदों का पाठ करते, मंत्रोच्चारण करते, संस्कार सीखते थे, और अपने मातृदेश जाकर सीखे ज्ञान को लोगो मे प्रवाहित करते यूँही नही हिंदी सभी भाषाओं की जननी बनी है, जैसे गंगा सदियों से निरंतर अपने पथ मार्ग पर प्रवाहित होती आ रही है, हिंदी भी उसी के तरह शुद्ध, निच्छल, विद्वेष रहित लोगो में ज्ञान की धारा प्रवाहित करती आ रही है।
आज का समय देखे तो इस आधुनिकता भरे संसार में जहाँ मोबाइल, कंप्यूटर आधुनिक गैजेट का जमाना है, यहाँ भी हिंदी की जरूरत देखने को मिलती है। आज के सुप्रसिद्ध सर्च इंजन गूगल में हिंदी का महत्वपूर्ण योगदान है तो वही फ़ेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, ईमेल इत्यादि एप्पलीकेशन में हिंदी की महत्ता देखने लायक है।
विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा चाइनीज भाषा मंदारिन के बाद दूसरे स्थान पर हिंदी आती है, और तीसरे पर अंग्रेजी। भारत में ही तकरीबन 46 करोड़ लोग हिंदी बोलते है तो वही विश्व में 75 फीसदी लोग हिंदी बोलते और समझते है।
रूस की राजधानी मास्को में तो हिंदी शिक्षण संस्थान का बड़ा केंद्र है तो वही भारत के साथ-साथ फिजी में भी हिंदी राजभाषा के रूप में अवतरित है।
विदेश के कई हिस्सों में हिंदी सिखाई जाती है, वहाँ पर छात्र हिंदी में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करते है।
मॉरीशस में हाल ही में हिंदी के प्रचार को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने सहयोग दिया है।
विश्व के कई देश जिनमे नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यामांर, मॉरीशस, भूटान इत्यादि जगहों पर हिंदी भाषी लोग भारी संख्या में देखने को मिलते है।
आज भारत मे ही लोग हिंदी बोलने में हिचकिचाहट और शर्म महसूस करते है, और वही विदेशी भाषा अंग्रेजी बड़े चाव और इज्जत के साथ बोलते है। भारत मे ही बड़ी- बड़ी मल्टीटॉस्किंग कंपनियों में अंग्रेजी को ही महत्ता मिलती है। यह गलत है हमे आने निजभाषा, मातृभाषा, हिंदी को गर्व से और सम्मान से बोलना चाहिए और लोगो को भी बोलने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
लेखक~ मुकेश श्रीवास्तव
ट्विटर~@mukeshsri945