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रमजान के तीन अशरो का अलग अलग महत्व

मुदस्सिर हुसैन CMD NEWS

अयोध्या – मुस्लिम समुदाय के लिए रमजान का महीना हर महीनों में खास है। जिसमे तीस या उनतीस दिनों तक रोजे रखे जाते हैं। इस्लाम के मुताबिक तीस रोजो को तीन हिस्सों में बांटा गया है। पहला, दूसरा,और तीसरा अशरा कहलाता हैं। इस खास महीने रमजान मुबारक पर जामा मस्जिद नेवरा के पेश इमाम मौलाना कामिल हुसैन नदवी ने इस महीने पर रोशनी डालते हुए उन्होंने बताया कि पहला अशरा रहमत का कहलाता है दूसरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है। और तीसरा जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है उन्होंने कहा कि हमारे नवी ने बताया है कि रमजान की शुरू आत रहमत है। इस अशरे में रोजा नमाज करने वालो पर अल्लाह की रहमत होती हैं। और दूसरे अशरे में मुस्लिम अपने गुनाहों से पवित्र हो सकते हैं। और आखिरी अशरे में जहन्नुम की आग से खुद को बचा सकते हैं। मौलाना कामिल हुसैन नदवी ने इस खास महीने की फजीलत बताते हुए कहा कि पहले अशरे में लोगो को ज्यादा से ज्यादा गरीबों की मदद करनी चाहिए और एक दूसरे से मोहब्बत रखना चाहिए, अल्लाह इन बातो से बहुत खुश होता है, दूसरे अशरे में ज्यादा से ज्यादा इबादत कर अपने गुनाहों से माफी मांगनी चाहिए, अल्लाह अपने नेक बंदों को माफ कर देता है। तीसरा अशरा आखिरी अशरा है इस अशरे को सबसे खास माना जाता है इस अशरे में हर मुसलमान को जहन्नुम से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए। रमजान का महीना बड़ा ही खेर व बरकत वाला महीना है।

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