समाजसेवी भोलानाथ मिश्र ने किसान आंदोलन के नाम पर हुई घटना पर व्यक्त किए अपने विचार
Ashish Singh
27/01/2021
BREAKING NEWS, बाराबंकी
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रामसनेही घाट,बाराबंकी।
27/01/2021
वरिष्ठ समाजसेवी पत्रकार रामसनेही घाट भोलानाथ मिश्र ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसान आंदोलन के नाम पर हुई अभूतपूर्व घटना पर त्वरित टिप्पणी की, उन्होंने अपने लेख में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा कि
देश के अन्नदाता किसानों के नाम पर एक बार फिर पंजाब हरियाणा सरकार एवं कांग्रेस सपा के सहयोग से ऐतिहासिक कलंक लगा दिया गया।किसानों के नाम पर टैक्ट्रर वाले किसानों की जमात लेकर गणतंत्र दिवस की पावन वेला दिल्ली में लालकिले पर चढ़कर जो नंगा नाच किया गया जिससे आंदोलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया है।किसानों के नाम पर ऐसा नंगा नाच किया गया जैसा किसी दूसरे की हिम्मत नहीं थी।लालकिला हमारे देश की आनबान शान है जहाँ से राष्ट्रीय ध्वज फहराकर देश प्रधानमंत्री आजादी का मुख्य जश्न मनाता है।कल दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन जिस तरह की खलल डाली गई जिसमें एक किसान की मौत भी हो गई।किसानों के नाम पर सुरक्षा बलों की सहनशीलता भी कम सराहनीय नहीं रही है कि उसे किस तरह जानलेवा पीटा भी गया फिर भी उसने मुसीबत में भी संयम नहीं खोया एवं फायर नहीं किया और किसी तरह भागकर अपनी जान बचाई।जिस दिन विजय दिवस मनाने के लिये पूरा देश प्रफुल्लित रहता है उस दिन किसानों के नाम पर तलवारें निकले हिंसक झड़पें हो और जान चली जाय इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है?गणतंत्र दिवस के मौके पर कल जो कुछ हुआ उसका समर्थन तो नहीं करता हूँ लेकिन इतना जरूर कह सकता हूँ कि इस ऐतिहासिक घटना से हमारे देश का बहुत नुकसान हुआ है।किसानों का आंदोलन पिछले करीब दो महीने से चल रहा है और किसान देश की राजधानी में डेरा जमाये सरकार की नींद हराम किये हुये हैं।इस दौरान दर्जनों किसानों की मौत भी हो चुकी है और सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर चुका है। किसान नेता बिल में खामियों को दूर करने की जगह उसे बिना शर्त सीधे वापस लेने की जिद्द पर अड़े है और उन्हें मनाने के लिए अबतक करीब एक दर्जन बातचीत के दौर भी हो चुके हैं।किसानों का पूरा आंदोलन राजनैतिक साये में हो रहा है और विपक्ष इसमें शामिल होकर अन्नदाता किसान भगवान के नाम अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने में जुटा हुआ है।किसानों के नाम पर सरकार आंदोलनकारियों के साथ सख्ती से पेश नहीं आ रही है और गणतंत्र दिवस पर टैक्ट्रर परेड करने की किसानों की बात को मानकर उन्हें रूट निर्धारित कर दिया गया था लेकिन किसानों को भड़का एवं गुमराह करके लालकिले तक पहुंचाकर इतिहास को कलंकित कर दिया गया।आखिर किसानों के नाम पर लालकिले की प्राचीर पर चढ़कर झंडा फहराने की क्या जरूरत थी? अन्नदाता किसान भगवान अपने बाल बच्चों के साथ रातदिन अपने खेत में लगा अपनी फसल की रखवाली एवं हल्दी मिर्चा तेल में परेशान रहता है और उसे घर खेत छोड़कर महीनों आंदोलन करने की फुर्सत नहीं है।इतने कठिन परिश्रम के बाद भी उसकी लागत पूंजी कभी कभी डूब जाती है और भगवान का जब कोप प्रकोप होता है तो मेहनत मशक्कत करने के बावजूद फसल नष्ट हो जाती है।इस बात की समीक्षा होनी चाहिए कि आखिर कौन सी व्यवस्था बिल में है जो किसान विरोधी है और उसे हटा देना उचित रहेगा क्योंकि पूरा का पूरा किसान बिल किसान विरोधी नही हो सकता है।लोकतंत्र में अपने हक के लिए धरना प्रदर्शन आंदोलन करने की छूट है जिस तरह गणतंत्र दिवस के मौके पर जिस तरह उपद्रव कर तोड़फोड़ मारपीट गुण्डागर्दी की गई उसे किसानों का आंदोलन तो नहीं कहा जा सकता है इसे सरकार को अस्थिर कर देश को दुनिया के सामने बेइज्जत करने की साजिश जरूर कहा जा सकता है।इस काले अध्याय की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए जरूरी हो गया है कि किसानों की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने वालों को समय रहते बेनकाब कर दिया जाय।