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संपादकीय- आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति खो बैठे


वो पहले तुम्हारी संस्कृति का उपहास उड़ाएंगे, तुम्हे अशिक्षित और गंवार बताएंगे। तुम्हे तुम्हारे ही संस्कृति और सभ्यता से हीन महसूस करवाएंगे। तुम्हारे मन में इतनी लज्जा भर देंगे की तुमको अपने संस्कृति और सभ्यता पर गर्व करना तो दूर तुम उनसे भागने लगोगे।
कौन हैं ये लोग?
ये लोग बिजनेस मैन भी है!
एक धर्म के ठेकेदार भी है!
जातिवादिता की गंदी राजनीति करने वाले भी हैं!
धर्म के नाम पर राजनीति की रोटियां तोड़ने वाले भी है!
बात करते है एक मंजन बनाने वाली फैक्ट्री की उसने पहले तुम्हारे नीम/बबूल के दातून को पिछड़ा और अशिक्षित लोगों का काम बताया। फिर उन्होंने अपना ब्रश बनाया और तुमको बेचा। एक दातून एक बार करने के बाद फेंक देते है, लेकिन एक ब्रश महीनों तक करते रहो। फिर उन्होंने अपना मंजन बनाया रसायन वाला, तुमको क्षणिक लाभ देकर तुमको उसकी आदत लगवाई। फिर धीरे धीरे तुमने अपना दातून फेंक कर प्लास्टिक ब्रश और रासायनिक मंजन करने लगे। फिर तुम थोड़े जागरूक हुए उससे होने वाली बीमारी पता चली तो अपनी लुटिया डूबते देख उन्होंने अपने मंजन में नमक डाल कर तुमको बेवकूफ बनाया। फिर तुम और जागरूक हुए तो उन्होंने कहा कि मेरे मंजन में लौंग, जायफल, तुलसी, अदरक, हल्दी, मिर्च, धनिया है। तुमने जो दातून को अपनी छोटी संस्कृति का उपहास उड़ाते हुए फेंका था, वही दातून पश्चिमी देशों में सैकड़ों रूपिये में बेचने लगे। पहले के व्यक्ति को दांत में कीड़े लगने की कोई बीमारी नही थी। लेकिन कृत्रिम मंजन करके तुमने वो बीमारी पाल ली।
आज के लोगों का दांत सौ वर्ष तक नहीं टूटता था, आज चालीस वर्ष पार करना बहुत मुश्किल है। तुम वर्षों से आधुनिकता के नाम पर बेवकूफ बनते आए हो। अपनी संस्कृति को जो तुम्हारे पूर्वजों ने सदियों से संजो कर रखा था, तुम्हारे पिता ने कुछ बचाया, तुम्हारे बच्चों ने कुछ में कुछ बचाया। और उनके आने वाली पीढ़ी सब भूल जायेगी। और तुम कुछ नही कर पाओगे। तुम बेवकूफ बनते आए थे, बनते रहोगे।
अब बात करे धर्म के नाम पर बिजनेस करने वाले। जिस गाय को हमारे पूर्वज देवीतुल्य मानते थे। माता के समान पूजते थे। तुमको आधुनिकता के नाम पर गाय के दूध में बैक्टीरिया दिखाई देने लगी। दूध जो सदियों से सम्पूर्ण आहार माना जाता है, अमृत समान माना जाता है, तुमको वही खुला दूध असुरक्षित महसूस होने लगा, फिर उन्होंने अपना पैकेट का दूध तुम्हे बेचा। तरह तरह की बीमारियों का घर बन गया तुम्हारा शरीर। जिस गोबर को घर में लीप कर हमारे माता बहन घर में टीबी के बैक्टीरिया को मार देती थी, तुम्हे उससे घिन आने लगी। फलस्वरूप तुम्हारे घर में बीमारी फैल गई। जिस गोबर से तुम्हे घिन आती थी, वही गोबर के उपले पश्चिमी देशों में आज सैकड़ों रूपिए में बिकते है।
कभी तालाब, कुएं और नदी का पानी पीकर ना बीमार होने वाले हमारे पूर्वज आज उनकी पीढ़ी फिल्टर पानी पी रही है। निशुल्क पानी पिला कर पुण्य कमाने वाला देश आज बीस रूपये का एक बोतल पानी पीकर खुद को गौरवान्वित कर रही है। तुमको खुला और हैंडपंप का पानी असुरक्षित और बैक्टीरिया जनित लगने लगा फिर तुमको प्लास्टिक बोतल की आदत डाली गई। तांबे के लोटे में पानी रखना हमारी संस्कृति में थी, जिससे रात भर में कीटाणु मर जाते थे, तुमने उसे प्लास्टिक का स्थान दिया। शरीर में मैक्रोप्लास्टिक के कण मिलने लगे, जानवरों में मिलने लगे यहां तो की जल जंतु में भी मिलने लगे। ये सब तुम्हारे ही गलती का नतीजा है, जो तुम्हारे साथ साथ तुम्हारे पर निर्भर रहने वाले सजीव भी भोग रहे है।
कभी सूती कपड़ो की खान कहे जाने वाले देश में तुमको सूती कपड़ो से दूर करने के लिए। तुमको गवांरू कहा फिर तुमको उन्होंने चिकने कपड़े की लत डाली, जो प्लास्टिक मिश्रित रहती थी, जिसको नायलॉन कहा जाता हैं। तुम नायलॉन के कपड़े पहन कर खुद को तुमने आधुनिक काल का बादशाह समझा, फिर जब दाद, खाज, खुजली जैसी बीमारी फैलने लगी तब भी तुम्हे समझ न आई। फिर जब तुमसे उन्होंने तुम्हारा सूती कपड़ा बनाने का हुनर छीन लिया तो अब तुमको वही सूती कपड़ा महंगा मिल रहा है। तुम चाह कर भी नहीं खरीद पाओगे।
उन्होंने तुमसे तुम्हारी संस्कृति छीनी, तुम्हारा हुनर छीना, तुम्हारी सभ्यता छीनी, तुम्हारा रोजगार छीना। फिर जब ये सब तुमसे दूर हो गया तो तुमको अब यही सब महंगे दाम में बेच कर बेवकूफ बना रहे है।
कपड़ा देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार पहना जाता है। भारत जैसे देश जो मानसून वाला देश है, यहां धोती कुर्ता जैसे ढीले ढाले कपड़े पहने जाते है, जो शरीर के लिए आरामदायक होता है। तुमको पैंट, शर्ट, टाई, बेल्ट की आदत डाली गई। फलस्वरूप आज बीमारी के कुबेर बने बैठे हो।
भारतीय संस्कृति में हाथ जोड़ना, अभिवादन करने का तरीका था। तुमने आधुनिकता के नाम पर हाथ मिलाना अपनी संस्कृति बना लिए, कोविड-19 जैसी बीमारी ने तुम्हारे होश उड़ा दिया। तब भी तुम्हे अक्ल नहीं आई।
ऐसे कितने ही उदाहरण है! जिनको लिखना शायद बहुत मुश्किल है। जिसको तुम अपनी दिनचर्या में समा चुके हो। चाह कर तुम उससे दूर नहीं हो सकते। और सच पूछो तो तुम होना भी नही चाहते।
उन्होंने तुम्हे पहले रासायनिक पदार्थ की लत लगाई, फिर जब तुम अपनी आयुर्वेदिक उपचार भूल गए, तो तुमको फिर आयुर्वेदिक के नाम पर बेवकूफ बनाया जा रहा है। और तुम बनोगे, क्योंकि तुमने इतिहास से कुछ नही सीखा। तुम पढ़े लिखे बेवकूफ हो। तुम आधुनिकता के नाम पर बेवकूफ हो। लज्जा आनी चाहिए तुम्हे खुद पर।
~मुकेश श्रीवास्तव
राज्य लेखक उत्तर प्रदेश
सीएमडी न्यूज

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