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नाबालिग बच्चों से कराया जा रहा है मनरेगा के तहत काम, कौन है जिम्मेदार ?


रिपोर्ट- एम.असरार सिद्दीकी 
बहराइच- कांग्रेस के जिस योजना की खुद मा. प्रधानमंत्री मोदी जी ने प्रशंसा की, उस योजना में पलीता लगाया जा रहा है। देश की सबसे बड़ी विकास योजना के नाम से मशहूर मनरेगा को अधीनस्थ सरकारी अमला ने अब ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच दिया है। इस योजना में ग्राम प्रधान और उसके लिये जिम्मेदार अधिकारी पलीता लगा रहे हैं।


मामला बहराइच जिले के नवाबगंज ब्लॉक के रुपैडिहा थाना अंतर्गत ग्राम सभा मिर्जापुर चहलवा का है,जहां पर सड़कों के पुनरुद्धार के लिए मनरेगा योजना द्वारा कराए जा रहे काम में नाबालिग बच्चों को मेहनत मजदूरी करते हुए देखा जा सकता है। यहां नाबालिग बच्चों से मनरेगा योजना के तहत होने वाले काम को कराया जा रहा है। जिस उम्र में इनके हाथों में किताबे और पेन होना चाहिये था, उस उम्र में इन बच्चों के हाथों में फावड़ा, कुदाल व मिट्टी से भरे तसले देकर काम कराया जा रहा है। एक तरफ जहां देश के नौनिहालों को शिक्षित करने के लिए सरकार करोड़ो रुपये खर्च कर रही है।
यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक ओर बाल श्रम पर भारत के कानून में सजा और प्रतिबंध का प्रावधान है। वहीं सरकारी योजनाओं में नाबालिग बच्चों द्वारा काम लिया जाना कहीं ना कहीं योजना में भ्रष्टाचार को उजागर कर रहा है। क्योंकि ग्रामीणों की शिकायत रहती है कि ग्राम प्रधान मनरेगा का काम या उनके जॉब कार्ड से नाम काट दिया है, जिसकी वजह से मजबूरी में वह पलायन करने को विवश हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन को रोकने के लिए ही मनरेगा योजना को लागू किया गया था,लेकिन इस ग्राम के नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान व उनके प्रतिनिधि कारिंदों की करतूतों ने पूरी योजना पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। एक सरकारी योजना और सरकार का पैसा और सरकार की जमीन यही नहीं सरकार के द्वारा ही लगाई गई रोक और सजा एक ग्राम प्रधान मातहतों के आगे नतमस्तक दिखाई दे रही है। जो नाबालिग बच्चों को काम पर रख कर उनके अधिकारों का हनन व शोषण किया जा रहा है।
मनरेगा काम करने हेतु नाबालिगों के जॉब कार्ड बन ही नही सकते। अगर बना तो यह बहुत ही बड़ा घोटाला सामने आ रहा है। यदि नहीं बना है तो इन मासूम बच्चों का खून पसीना बहा शोषण कर फर्जी मस्टरोल भर कर भुकतान कर योजनओं में बंदरबांट करने वालों पर कार्यवाही क्यों नही होती है।
इन सब के बीच में सबसे बड़ा सवाल तो यह उठता है कि इन नाबालिग बच्चों के मेहनत के बाद मजदूरी किस हिसाब से मिलेगी, क्योंकि जब कार्ड ही नहीं बना तो नाबालिगों को मजदूरी करने का कार्य कैसे मिल गया। अब सवाल ये उठता है कि इन नाबालिग बच्चों को दिखाकर जब सरकार के खजाने से पैसा निकाल कर मजदूरी का भुगतान कर लिया जाएगा। तो यह ग्रामीण इलाका बेरोजगारी कारण और ही पिछड़ता जाएगा। जबकि प्रदेश के मुखिया मा.योगी आदित्यनाथ जी ने 28 मई को ग्राम प्रधानों से वीडियो कांफ्रेसिंग सम्बोधन में प्रधानों को गावों मे अधिकाधिक रोजगार पैदा करने पर बल दिया है। आखिरकार किस कारणवश नाबालिक बच्चों से कार्य करवाया जा रहा है,अब इन सब चीजों के बीच में एक बात तो आमंजनमानस के समझ में आ ही जाती है कि सरकारी जांच किस स्तर पर चलती है। लेकिन सरकार को जो नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई आखिर कौन करेगा जब नाबालिग बच्चों से काम करवाने का कोई आदेश ही नहीं है और नाबालिग बच्चों से काम करवाने के जब ग्राम प्रधान के खिलाफ सारे साक्ष्य तश्वीरो में मौजूद हों तो आखिर किस बात की जांच होगी। इसी बात को लेकर लोगों में चर्चा बनी हुई है। इस सम्बंध में खण्ड विकास अधिकारी शैलेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि बच्चों का मास्टरोल नहीं निकाला गया है,यदि नाबालिग बच्चों से काम कराया जा रहा है तो इसकी जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी।

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